स्वामी विवेकानंद: जीवन परिचय
Swami Vivekananda Biography in Hindi – भारत के महान आध्यात्मिक गुरु और समाज सुधारक स्वामी विवेकानंद जी का जन्म 12 जनवरी, 1863 कोलकाता, पश्चिम बंगाल में हुआ था। स्वामी विवेकानंद जी को देश के सबसे बड़े यूथ आइकन माना जाता हैं। विश्व मंच पर हिंदू धर्म को विवेकानंद जी ने उन्होंने 19वीं शताब्दी के अंत में एक मजबूत पहचान दिलाई थी और दुनिया में वेदांत दर्शन का प्रसार किया था। विवेकानंद जी ने अपने गुरु ‘रामकृष्ण परमहंस’ के नाम पर वर्ष 1897 में ‘रामकृष्ण मिशन’ तथा ‘रामकृष्ण मठ’ की स्थापना की थी। हर वर्ष स्वामी विवेकानंद जी के जन्म दिवस पर ‘राष्ट्रीय युवा दिवस’ (National Youth Day) के रूप में मनाया जाता है।
स्वामी विवेकानंद जी जन्म कब और कहाँ हुआ था?
स्वामी विवेकानंद का जन्म कलकत्ता में एक बंगाली कायस्थ परिवार में 12 जनवरी, 1863 को हुआ था। स्वामी विवेकानंद जी का वास्तविक नाम ‘नरेन्द्रनाथ दत्त’ था और इनके पिता का नाम ‘विश्वनाथ दत्त’ था वे एक उच्च न्यायलय में एक प्रसिद्ध वकील थे। स्वामी विवेकानंद जी की माता का नाम ‘भुवनेश्वरी देवी’ थे वे एक घार्मिक विचारों वाली महिला थीं।
स्वामी विवेकानंद जी की शिक्षा
लेखों में बताया गया है की इनकी शिक्षा का आरंभ अपने घर से हुआ था। इसके बाद इनकी सात वर्ष की आयु में ‘ईश्वरचंद्र विद्यासागर’ के मेट्रोपोलिटन स्कूल में भर्ती किया गया। इस स्कुल में स्वामी जी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण की और अपनी 16 वर्ष की उम्र में हाईस्कूल की परीक्षा प्रथम श्रेणी से पास की। वर्ष 1879 में स्वामी विवेकानंद जी ने ‘प्रेसीडेंसी कॉलेज’, कलकत्ता में दाखिला लिया। एवं बाद में ‘जनरल असेंबली इंस्टीट्यूट’ (अब स्कॉटिश चर्च कॉलेज) में अपनी पढाई जारी रखी। इस दौरान उन्होंने साथ-साथ साहित्य, दर्शन और धर्म का गंभीर अध्ययन भी किया।
स्वामी विवेकानंद का संन्यासी बनना
वर्ष 1881 में कलकत्ता में ही स्थित दक्षिणेश्वर मंदिर में स्वामी विवेकानंद को जी को अपने भावी गुरु श्री ‘रामकृष्ण परमहंस’ के दर्शन करने का सौभाग्य मिला जो मां काली के भक्त थे। एक बार जब उन्होंने परमहंस जी से एक सवाल पूछा कि क्या आपने भगवान को देखा है? तब इस सवाल के जवाब में रामकृष्ण परमहंस जी ने कहा कि हां मैंने भगवान को देखा है, ठीक उसी तरह देखा है जैसे मैं तुम्हें देख रहा हूं। उनका यह जवाब सुनकर वे बहुत प्रभावित हुए और अकसर रामकृष्ण परमहंस जी के पास अपनी जिज्ञासा को शांत एवं सरल करने के लिए जाने लगे। धीरे धीरे वे अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस जी का सत्संग करने लगे। इस सत्संग में उनके जीवन में यह प्रभाव हुआ कि वे गृहस्थ जीवन में नहीं बंधे और मात्र अपनी 25 वर्ष की आयु में वे संन्यासी बन गए।
स्वामी विवेकानंद जी का आध्यात्मिक गुरु बनना
वर्ष 1884 में उनके पिता का स्वर्गवास हो गया। जिसके इसके बाद घर की जिम्मेदारी सँभालने के लिए नौकरी तलाशने में सफल न हुए और वे रामकृष्ण परमहंस के पास जाने लगे और अपना अधिंकाश समय उन्ही के स्थान पर व्यतीत करने लगे। इस तरह वे रामकृष्ण परमहंस बालक नरेन्द्र नाथ के आध्यात्मिक गुरु बन गए।
रामकृष्ण परमहंस जी की मृत्यु
रामकृष्ण परमहंस जी को गले के कैंसर नामक बीमारी थी से पीड़ित थे। वर्ष 1886 में श्री परमहंस जी का भी महाप्रस्थान हो गया। वहीं महाप्रस्थान से तीन दिन पूर्व रामकृष्ण जी ने अपने शिष्य स्वामी विवेकानंद जी को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था।
देश-विदेश में भ्रमण
स्वामी विवेकानंद जी के आध्यात्मिक गुरु बनने के बाद उन्होंने शिक्षाओं के प्रचार एवं प्रसार का कार्य शुरू रखा एवं देश के कई तीर्थ स्थानों पर भ्रमण किया उन्होंने कलकत्ता, काशी, मथुरा, अयोध्या और हाथरस होते हुए हिमालय की यात्रा की एवं बाद में दक्षिण भारत की यात्रा शुरू की। वर्ष 1893 में स्वामी विवेकांनद जी ने शिकागो, अमरीका में होने वाले विश्व धर्म सम्मलेन में भाग लिया।
कैसे मिला ‘विवेकानंद’ नाम
विश्व धर्म सम्मलेन में भाग लेने के लिए अमरीका जाने से पहले स्वामी जी को राजस्थान के खेतड़ी के राजा अजीत सिंह ने उन्हें ‘विवेकानंद’ नाम दिया था। साथ ही उनकी वेशभूषा को भी राजा अजीत सिंह ने ही उन्हें उपहार स्वरूप दी थी।
विश्व धर्म सम्मलेन में दिया यादगार भाषण
शिकागो के विश्व धर्म सम्मलेन में स्वामी विवेकानंद ने अपने भाषण की शुरुआत “मेरे प्रिय अमेरिकी भाइयों और बहनों” के साथ की थी। इसके बाद सभा में उन्होंने संसार को भारतीय धर्म और दर्शन से परिचित कराया। इसके बाद विवेकानंद जी कुछ सालो तक अमरीका देश में रहे और वेदांत का प्रचार किया। फिर स्वामी विवेकांन जी ने पूरे यूरोप का व्यापक भ्रमण किया और पाश्चात्य विद्वान ‘मैक्स मूलर’ और ‘निकोला टेस्ला’ से संवाद किए।
रामकृष्ण मिशन की स्थापना
वर्ष 1897 में उन्होंने ‘रामकृष्ण मिशन’ तथा ‘रामकृष्ण मठ’ की स्थापना की। इसी दौरान उन्होंने कलकत्ता स्थित बेलूर मठ का निर्माण भी कराया जोकि वर्ष 1899 के आरंभ में रामकृष्ण परमहंस के अनुयायियों का स्थायी केंद्र बन गया था। बाद में स्वामी विवेकांनद जी ने अद्वैत आश्रम नाम से दो अन्य और मठों की भी स्थापना की।
स्वामी विवेकानन्द के आधारभूत सिद्धान्त
- बालक एवं बालिकाओं दोनों को समान शिक्षा देनी चाहिए।
- धार्मिक शिक्षा, पुस्तकों द्वारा न देकर आचरण एवं संस्कारों द्वारा देनी चाहिए।
- पाठ्यक्रम में लौकिक एवं पारलौकिक दोनों प्रकार के विषयों को स्थान देना चाहिए।
- शिक्षा, गुरू गृह में प्राप्त की जा सकती है।
- शिक्षक एवं छात्र का सम्बन्ध अधिक से अधिक निकट का होना चाहिए।
- सर्वसाधारण में शिक्षा का प्रचार एवं प्रसार किया जान चाहिये।
स्वामी विवेकांनद की रचनाएँ
स्वामी विवेकांनद जी ने वर्ष 1887 से 1901 के बीच बहुत से ग्रंथों की रचना की थी जो अनेक विषयों से सम्बंधित थे। निचे स्वामी विवेकांनद की रचनाओं की सूचि दी गई है;-
- Complete Works of Swami Vivekananda
- Raja Yoga
- Karma Yoga
- Meditation and Its Methods
- The Powers of The Mind
- Jnana Yoga
- Teachings of Swami Vivekananda
- Practical Vedanta
- India’s Message to the World
- Karma-Yoga & Bhakti-Yoga
- Bartaman Bharat
- Inspired Talks
- The Book of Yoga
- The Song of the Sannyasin
- The East and the West
- Be one with God: A guiding light to mankind
- My Idea of Education
- Bhagavad Gita As Viewed by Swami Vivekananda
- Ekagrata Ka Rahasya
- Work and Its Secret
- Sisters and Brothers of America
- The Chicago addresses
- The Yoga Sutras of Patanjali
- The Sages of India
- Lectures
- Kali the Mother
- My Master
- Lectures from Colombo to Almora
स्वामी विवेकांनद के अनमोल विचार एवं वचन
निचे स्वामी विवेकानंद के कुछ अनमोल विचारों की सूचि दी गई है:-
- जितना बड़ा संघर्ष होगा, जीत उतनी ही शानदार होगी।
- खुद को कमजोर समझना सबसे बड़ा पाप है।
- सत्य को हजार तरीकों से बताया जा सकता है, फिर भी वह एक सत्य ही होगा।
- बाहरी स्वभाव केवल अंदरूनी स्वभाव का बड़ा रूप है।
- विश्व एक विशाल व्यायामशाला है जहाँ हम खुद को मजबूत बनाने के लिए आते हैं।
- जैसा तुम सोचते हो, वैसे ही बन जाओगे। खुद को निर्बल मानोगे तो निर्बल और सबल मानोगे तो सबल ही बन जाओगे।
- उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति ना हो जाए।
- जो कुछ भी तुम्हें कमजोर बनाता है- शारीरिक, बौद्धिक या मानसिक, उसे जहर की तरह त्याग दो।
- संगति आप को ऊंचा उठा भी सकती है और यह आप की ऊंचाई से गिरा भी सकती है। इसलिए संगति अच्छे लोगों से करें।
- जब तक जीना, तब तक सीखना। अनुभव ही जगत में सर्वश्रेष्ठ शिक्षक है।
- तुम्हें कोई पढ़ा नहीं सकता, कोई आध्यात्मिक नहीं बना सकता। तुमको सब कुछ खुद अंदर से सीखना है। आत्मा से अच्छा कोई शिक्षक नहीं है।
- यह कभी मत कहो कि ‘मैं नहीं कर सकता’, क्योंकि आप अनंत हैं।
- सब कुछ खोने से ज्यादा बुरा उस उम्मीद को खो देना जिसके भरोसे हम सब कुछ वापस पा सकते हैं।
- एक समय में एक काम करो, ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमें डाल दो और बाकि सबकुछ भूल जाओ।
नोट: यह लेख “स्वामी विवेकांनद जी के जीवन परिचय” के बारे प्रकाशित है, यदि स्वामी विवेकांनद के बारे में कुछ गलत प्रकाशित हो गया है कृपया हमें कमेंट में बतायें और सुधार करने में हमारी मदद करे।