Srinivasa Ramanujan Biography in Hindi – श्रीनिवास रामानुजन् एक महान भारतीय गणितज्ञ थे इन्हें गणित में कोई विशेष प्रशिक्षण नहीं मिला, फिर भी इन्होंने विश्लेषण एवं संख्या सिद्धांत के क्षेत्रों में गहन योगदान दिए। रामानुजन् ने खुद से गणित सीखा और अपने जीवनभर में गणित के 3,884 प्रमेयों का संकलन किया। इन्होंने गणित के सहज ज्ञान और बीजगणित प्रकलन की अद्वितीय प्रतिभा के बल पर बहुत से मौलिक और अपारम्परिक परिणाम निकाले जिनसे प्रेरित शोध आज तक हो रहा है हाल में इनके सूत्रों को क्रिस्टल-विज्ञान में प्रयुक्त किया गया है। इनके कार्य से प्रभावित गणित के क्षेत्रों में हो रहे काम के लिये रामानुजन जर्नल की स्थापना की गई है। रामानुजन ने दस वर्षों की आयु में प्राइमरी परीक्षा में पूरे जिले में सबसे अधिक अंक प्राप्त किया हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद इन्हें गणित और अंग्रेजी मे अच्छे अंक लाने के कारण सुब्रमण्यम छात्रवृत्ति मिली और आगे कालेज की शिक्षा के लिए प्रवेश भी मिला। वर्ष 1908 में इनके माता पिता ने इनका विवाह जानकी नामक कन्या से कर दिया।
श्रीनिवास रामानुजन् की जीवनी पर शीघ्र सामान्य ज्ञान | |
जीवन परिचय बिंदु | श्रीनिवास रामानुजन् |
पूरा नाम | श्रीनिवास रामानुजन् इयंगर |
जन्म | 22 दिसम्बर, 1887 |
जन्म स्थान | इरोड, तमिल नाडु |
पिता | श्रीनिवास अय्यंगर |
विवाह | जानकी नामक कन्या |
माता | कोमलताम्मल |
डॉक्टरी सलाहकार | गॉडफ्रे हेरॉल्ड हार्डी और जॉन इडेन्सर लिटलवुड |
क्षेत्र | गणित |
शिक्षा | कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
प्रसिद्धि | लैंडॉ-रामानुजन् स्थिरांक रामानुजन्-सोल्डनर स्थिरांक रामानुजन् थीटा फलन रॉजर्स-रामानुजन् तत्समक रामानुजन् अभाज्य कृत्रिम थीटा फलनs रामानुजन् योग |
मृत्यु | 26 अप्रैल, 1920 चेटपट, (चेन्नई), तमिल नाडु |
नोकरी पाने की इच्छा में रामानुजन मद्रास आए और नौकरी की तलाश शुरू कर दी और वे इसी समय रामानुजन वहां के डिप्टी कलेक्टर श्री वी. रामास्वामी अय्यर से मिले। अय्यर गणित के बहुत बड़े विद्वान थे। यहां पर श्री अय्यर ने रामानुजन की प्रतिभा को पहचाना और जिलाधिकारी श्री रामचंद्र राव से कह कर इनके लिए 25 रूपये मासिक छात्रवृत्ति का प्रबंध भी कर दिया। इस वृत्ति पर रामानुजन ने मद्रास में एक साल रहते हुए अपना प्रथम शोधपत्र प्रकाशित किया। शोध पत्र का शीर्षक था “बरनौली संख्याओं के कुछ गुण” और यह शोध पत्र जर्नल ऑफ इंडियन मैथेमेटिकल सोसाइटी में प्रकाशित हुआ था।
रामानुजन ने इंग्लैण्ड जाने के पहले गणित के करीब 3000 से भी अधिक नये सूत्रों को अपनी नोटबुक में लिखा था। उन्होंने प्रोफेसर हार्डी के साथ मिल कर उच्चकोटि के शोधपत्र प्रकाशित किए। अपने एक विशेष शोध के कारण इन्हें कैंब्रिज विश्वविद्यालय द्वारा बी.ए. की उपाधि भी मिली।
रामानुजन ने इंग्लैण्ड में पाँच वर्षों तक मुख्यतः संख्या सिद्धान्त के क्षेत्र में काम किया।
- सूत्र
- पाई के लिये उन्होने एक दूसरा सूत्र भी (सन् १९१० में) दिया था
- रामानुजन संख्याएँ
- अतः 1729, 4104, 20683, 39312, 40033 आदि रामानुजन संख्याएं हैं।
रामानुजन को रॉयल सोसाइटी का फेलो नामित किया गया। रॉयल सोसाइटी के पूरे इतिहास में इनसे कम आयु का कोई सदस्य आज तक नहीं हुआ है। पूरे भारत में उनके शुभचिंतकों ने उत्सव मनाया और सभाएं की। रॉयल सोसाइटी की सदस्यता के बाद यह ट्रिनीटी कॉलेज की फेलोशिप पाने वाले पहले भारतीय भी बने।
इंग्लैण्ड में रामानुजन को वहां की जलवायु और रहन-सहन की शैली उनके अधिक अनुकूल नहीं थी और उनका स्वास्थ्य खराब रहने लगा। डॉक्टरों ने इसे क्षय रोग बताया। भारत लौटने पर भी स्वास्थ्य ने इनका साथ नहीं दिया और हालत गंभीर होती जा रही थी। यहां तक की अब डॉक्टरों ने भीजवाब दे दिया था। अंत में रामानुजन के विदा की घड़ी आ ही गई। 26 अप्रैल 1920 के प्रातः काल में वे अचेत हो गए और दोपहर होते होते उन्होने प्राण त्याग दिए। इस समय रामानुजन की आयु मात्र 33 वर्ष थी।
वे धर्म और आध्यात्म में केवल विश्वास ही नहीं रखते थे बल्कि उसे तार्किक रूप से प्रस्तुत भी करते थे। वे कहते थे कि “मेरे लिए गणित के उस सूत्र का कोई मतलब नहीं है जिससे मुझे आध्यात्मिक विचार न मिलते हों।”
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