Major Dhyan Chand Biography in Hindi – मेजर ध्यानचंद सिंह भारतीय फील्ड हॉकी के भूतपूर्व खिलाड़ी एवं कप्तान थे। वह पंजाब रेजीमेंट के सिपाही भी रह चुके थे वे तीन बार ओलम्पिक के स्वर्ण पदक जीतने वाली भारतीय हॉकी टीम के सदस्य रहे उनकी जन्मतिथि को भारत में “राष्ट्रीय खेल दिवस” के के रूप में मनाया जाता है इसी दिन खेल में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार अर्जुन और द्रोणाचार्य पुरस्कार प्रदान किए जाते हैं ध्यानचंद का गेंद पर इतना अधिक कंट्रोल रहता था कि ऐसा लगता था, मानो गेंद उनकी हॉकी से चिपक गई हो इसलिए उन्हें हॉकी का जादूगर ही भी कहा जाता है उन्हें 1956 में भारत के प्रतिष्ठित नागरिक सम्मान पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था। ध्यानचंद को फुटबॉल में पेले और क्रिकेट में ब्रैडमैन के समतुल्य माना जाता है। उनकी कलाकारी से मोहित होकर ही जर्मनी के रुडोल्फ हिटलर सरीखे जिद्दी सम्राट ने उन्हें जर्मनी के लिए खेलने की पेशकश कर दी थी। लेकिन ध्यानचंद ने हमेशा भारत के लिए खेलना ही सबसे बड़ा गौरव समझा। वियना में ध्यानचंद की चार हाथ में चार हॉकी स्टिक लिए एक मूर्ति लगाई और दिखाया कि ध्यानचंद कितने जबर्दस्त खिलाड़ी थे 13 मई सन् 1926 ई. को न्यूजीलैंड में पहला मैच खेला था। न्यूजीलैंड में 21 मैच खेले जिनमें 3 टेस्ट मैच भी थे। इन 21 मैचों में से 18 जीते, 2 मैच अनिर्णीत रहे और और एक में हारे। पूरे मैचों में इन्होंने 192 गोल बनाए। उनपर कुल 24 गोल ही हुए। अंतर्राष्ट्रीय मैचों में उन्होंने 400 से अधिक गोल किए। अप्रैल, 1949 ई. को प्रथम कोटि की हाकी से संन्यास ले लिया।
हॉकी के जादूगर मेजर ध्यान चंद की जीवनी पर शीघ्र सामान्य ज्ञान | |
जीवन परिचय बिंदु | ध्यानचंद जीवन परिचय |
पूरा नाम | मेजर ध्यानचन्द सिंह |
जन्म | 29 अगस्त 1905 |
जन्म स्थान | इलाहबाद, उत्तरप्रदेश |
पिता | समेश्वर दत्त सिंह |
अभिभावक | समेश्वर दत्त सिंह (पिता) |
खेल-क्षेत्र | हॉकी |
प्लेयिंग पोजीशन | फॉरवर्ड |
भारत के लिए खेले | 1926 से 1948 तक |
पुरस्कार-उपाधि | पद्म भूषण (1956) |
प्रसिद्धि | हॉकी का जादूगर |
विशेष योगदान | ओलम्पिक खेलों में भारत को लगातार तीन स्वर्ण पदक (1928, 1932 और 1936) दिलाने में मेजर ध्यानचन्द का अहम योगदान है। |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | ध्यानचन्द के जन्मदिन (29 अगस्त) को भारत का ‘राष्ट्रीय खेल दिवस’ घोषित किया गया है। |
मृत्यु | 3 दिसंबर, 1979 |
मृत्यु स्थान | नई दिल्ली |
1928 में एम्सटर्डम ओलम्पिक खेलों में पहली बार भारतीय टीम ने भाग लिया। 1932 में लास एंजिल्स में हुई ओलम्पिक प्रतियोगिताओं में भारत ही जीता, जिसमे ध्यानचंद ने 262 में से 101 गोल स्वयं किए 1936 के बर्लिन ओलपिक खेलों में ध्यानचंद को भारतीय टीम का कप्तान चुना गया। 15 अगस्त 1936 को भारत और जर्मन के बीच फाइनल मुकाबला होआ | भारतीय खिलाड़ी जमकर खेले और जर्मन की टीम को 8-1 से हरा दिया
चौथाई सदी तक विश्व हॉकी जगत् के शिखर पर जादूगर की तरह छाए रहने वाले मेजर ध्यानचंद सिंह जी कैंसर जैसी लंबी बीमारी को झेलते हुए वर्ष 1979 में का उनका देहांत हो गया|
उन्हें 1956 में भारत के प्रतिष्ठित नागरिक सम्मान पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था। उनके नाम पर ‘ध्यानचंद पुरस्कार’ खिलाड़ियों को दिया जाता है। ध्यानचंद के नाम पर दिल्ली में इंडिया गेट के पास बने नेशनल स्टेडियम का नाम ‘ध्यानचंद स्टेडियम’ कर दिया गया । ध्यानचंद एकमात्र ऐसे खिलाड़ी हैं जिनकी मूर्ति इंडिया गेट के पास स्टेडियम में भी लगाई गई है भारतीय ओलम्पिक संघ ने ध्यानचंद को शताब्दी का खिलाड़ी घोषित किया था। इसके अलावा भारतीय डाक सेवा ने भी ध्यानचंद के नाम से डाक-टिकट चलाई|
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