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Ashvaghosha in Hindi – बौद्ध महाकवि तथा दार्शनिक अश्वघोष का जीवन परिचय हिंदी में

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Ashvaghosha Biography in Hindi – संस्कृत के प्रथम बोद्ध महाकवि अश्वघोष के जीवनवृत्त से सम्बंधित अत्यल्प विवरण ही प्राप्त है. ‘सोंद्र्नंद’ नामक महाकाव्य से ज्ञात होता है की इनकी माता का नाम का सुवार्नाक्षी था. ये साकेत के निवासी थे. ये महाकवि के अतिरिक्त ‘भदंत’ , आचार्य’ तथा ‘महावादी’ आदि उपाधियो से विभूषित थे. उनके काव्यो की अन्तरंग परीक्षा से ज्ञात होता है कि वे जाति से ब्राह्राण थे तथा वैदिक साहित्य , महाभारत – रामायण के मर्मज्ञ विद्द्वान थे. उनका ‘सकेतक’ होना इस तथ्य का परिचायक है कि उन पर रामायण का व्यापक प्रभाव था.

सम्राट कनिष्क के राजकवि अश्वघोष बोद्ध धर्म के कट्टर अनुयायी थे. इनकी रचनाओ पर बोद्ध धर्म एव गौतम बौद्ध के उपदेशों का पर्याप्त प्रभाव परिलक्षित होता है. अश्वघोष ने धर्म का प्रसार करने के उद्देश्य से ही कविता लिखी थी. अपनी कविता के विषय में अश्वघोष की सुस्पष्ट उद्घोषणा है कि चर्चा करने वाली यह कविता शांति के लिए है, विलास के लिए नहीं काव्य-रूप में यह इसलिय लिखी गई है ताकि अन्यमनस्क श्रोता को अपनी ओर आकृष्ट कर सके.

अश्वघोष बौद्ध दर्शन साहित्य के प्रकाण्ड पंडित थे. इनकी गणना उन कलाकारों की श्रेणी में की जाती है, जो कलात्मक रूप में अपनी मान्यताओ को प्रकाशित करते है. इन्होने कविता के माध्यम से बौद्ध धर्म के सिधान्तो का विवेचन कर जनसाधारण के लिए सरलता तथा सरलता-पूर्वक सुलभ एव आकर्षक बनाने का सफल प्रायस किया है. इनकी समस्त रचनाओ में बौद्ध धर्म के सिद्धांत प्रतिबिम्बित हुए है. भगवान बुद्ध के प्रति अपरिमित आस्था तथा अन्य धर्मो के प्रति सहिष्तुता महाकवि अश्वघोष के व्यकित्त्व की अन्यतम विशेषता है. अश्वघोष कवि होने के साथ ही संगीत मर्मज्ञ भी थे. उन्होंने अपने विचारो को प्रभावशाली बनाने के लिए काव्य के अतिरिक्त गीतात्मक को प्रमुख साधन बनाया.

बहुमुखी प्रतिभा के धनि तथा संस्कृत के बहुश्रुत विद्धान महाकवि अश्वघोष में शास्त्र और काव्य सर्जन की समान प्रतिभा थी. उनके व्यकित्त्व में कवित्व तथा आचार्यत्व का मणिकांचन संयोग था. उन्होंने सज्रसूचि, महायान श्रद्धोत्पादशास्त्र तथा सूत्रालांकार अथवा कल्पनामंडीतिका नामक धर्म और दर्शन विषयों के अतिरिक्त शारिपुत्रप्रकरण नामक एक रूपक तथा बुद्धचरित तथा सौन्दरनन्द नामक दो महाकाव्यों की भी रचना की, इन रचनाओं में बुद्धचरित महाकवि अश्वघोष का कीर्तिस्तंभ हैं. इसमें कवि ने तथागत के सात्विक जीवन का सरल और सरस वर्णन किया हैं. ‘सौन्दरनन्द’ अश्वघोषप्रणित द्वित्तीय महाकाव्य हैं. इसमें भगवान बुद्ध के अनुज नन्द का चरित वर्णित हैं. इन रचनाओं के माध्यम से बोद्ध धर्म के सिधान्तों का विवेचन कर उन्हें जनसाधारण के लिए सुलभ कराना ही महाकवि अश्वघोष का मुख्य उद्देश्य था. इनकी समस्त रचनाओं में बोद्ध घर्म के सिद्धांत सुस्पष्ट रूप से प्रतिबिम्बित हैं. अश्वघोष प्रणित महाकाव्यों में बुद्धचरित अपूर्ण तथा सौन्दरनन्द पूर्ण रूप से मूल संस्कृत में उपलब्ध हैं.

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